पुरानीबस्ती : चारु चंद्र की चंचल किरणें by मैथिलीशरण गुप्त
पुरानीबस्ती
चाँद भी कंबल ओढ़े निकला था,सितारे ठिठुर रहें थे,सर्दी बढ़ रही थी,ठंड से बचने के लिए, मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े।
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Thursday, August 3, 2017
चारु चंद्र की चंचल किरणें by मैथिलीशरण गुप्त
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
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