पिछले कुछ सालो में रिश्ते भी धीरे - धीरे आधुनिकता में खो रहें हैं. संचार क्रांति में आयी तेजी से जहाँ एक तरफ रिश्ते एक कॉल की दूरी पर आ गए वही व्हाट्सएप्प जैसे माध्यमो से दुनियाँ वही पर सिमट गयी। अब लोग खाते वक़्त एक दूसरे की प्लेट नहीं अपना मोबाइल का डिस्प्ले निहारते हैं।
वही बीच में सहपरिवार गांव जाने के कार्यक्रम बना। जाने का मन किसी का भी नहीं था क्योंकि हमारे गांव में आज भी बिजली कम ही आती है परंतु दादाजी की दबाव में सभी को चलना पड़ा। सभी ने अपना मोबाइल फुल चार्ज कर लिया, पावर बैंक भी पूर्णतः चार्ज कर लिया गया। अट्ठारह घंटे के सफर के बाद सभी गांव पहुंचे। छोटे चाचा ने पहले से ही जग्नेटर का इंतजाम कर दिया था तो बिजली की व्यवस्था सुचारू रूप से बनी थी।
हमारे गांव पहुँचने के तीसरे दिन शाम के वक़्त अचानक से जग्नेटर ख़राब हो गया। किसी को भी इस आपदा का ज्ञान होता उससे पहले सभी के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो चुकी थी। जिनकी थोड़ी बहुत बची थी उनकी भी थोड़े समय में टांय टांय फ़ीस हो गयी। अब सभी धीरे धीरे एक जगह एकत्रित हो गए। दादाजी को चारो तरफ से घेर कर सभी बैठ गए।
अचानक से लगा की परिवार में इतने लोग हैं। फिर धीरे धीरे एक बंगला बने प्यारा से अंताकक्षड़ी का सिलसिला शुरू हुआ। मुकेश, किशोर और रफ़ी के गानो के साथ शाम सुरों से भर गयी. रात के खाने के समय चांदनी की रोशनी और टिमटिमाते तारों में लालटेन भी रोशनी फैलाने का प्रयास कर रही थी और यही है #AwakenYourForce.
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